स.पू.अंक-13,अक्टू-दिस-2011,पृ-79
बाँध से बिछुड़ने के पहले हमने पाँच मिनट के लिए दूर झलकती, सरकती, सिंदूरी सन्ध्या में सांवली होती हुई राप्ती नदी को देखा। हमारे जन्म के न जाने कितने वर्षों पहले से, सदियों, सहस्त्राब्दियों और कल्पों से बहती हुई नदी, कल हमारे न रहने के बाद भी बहेगी, ठीक इसी तरह दोनों पाट डुबोती, कभी पाटो का अनुशासन स्वीकार करती हुई। नदी! तुम भयावह हो, वन्दनीय हो, कठोर हो, ममतामयी हो, जीवनदायी हो, मृत्युवाहिनी हो। तुम्हें करबद्ध प्रणाम करूँ या पराजित अन्त:क्रोध से भरा हुआ एकटक देखता रहूँ? आत्ममग्न होकर कदम पर कदम बढ़ाते–बढ़ाते एकाएक कोई शोर सुनाई पड़ता है - में, में, में... एक साथ सैकड़ों स्वरों की गुत्थमगुत्थ टकराहट। मानो घर पहुँचने की हड़बड़ी में कहीं भागदौड़ मच गयी हो। वातावरण इस चीख–पुकार से बोझिल–व्याकुल हो उठा है। करीब पहुँचने पर नंगे फकीर की तरह हिलती हुई एक काया नजर आती है। दोनों पाँव धूल की परत–दर–परत से ढँके हुए, कमर में वही प्याज के छिलके जैसी धोती। शेष बदन पर धूल की परत और नम पसीने के सिवाय कुछ नहीं, कुछ भी नहीं। ये हैं हमारे गड़रिया चाचा-भेड़ों के ईश्वर, उनके भाई–बन्धु, माँ–बाप, कर्ता–धर्ता, पेट-भर्ता। इनका देहाती मुहावरे में एक नाम और भी है- 'भेड़ी हारा', अर्थात इस धरती पर भेड़ों को युगों–युगों से हांकने, चराने वाला महामानव। संपर्क सूत्र- आलेखसंस्कृति और समाजकारबि समाज का प्राचीन शैक्षिक अनुष्ठान - 'जिरकेदाम' (जिरछड़)
जाति, समाज और संस्कृति का भविष्य निर्भर करता है बढ़ते हुए युवाशक्ति पर। इसलिए भविष्य की उत्तराधिकारी युवक–युवतियों को औपचारिक शिक्षा के द्वारा सामाजिक रीति–नीति, आध्यात्मिक दर्शन, कृषि–प्रशासन, नृत्य–गीत, शिल्प और अनुशासन आदि हर क्षेत्र में योग्य बनाने के लिए एक नयी परम्परा का सृजन हुआ। आधुनिक समाज में शिक्षा का अर्थ विद्यालय महाविद्यालय में जाकर लिखने पढ़ने की जो प्रक्रिया है, वह पहले की अपेक्षा नई है। निरक्षर जनजाति के लिए शिक्षा का अर्थ इतना संकीर्ण नहीं है। उन लोगों के विचार से शिक्षा है, सम्पूर्ण जीवन से प्राप्त वह तजुरबे, जिस तजुरबा के सहारे एक निष्कपट बालक अपने–आपको समाज में एक दायित्व शील, ईमानदार व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित करने में सक्षम होता है। |
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