गवेषणा 2011 पृ-29
तकनीकी भाषा के भी ये ही लक्षण होते हैं। लेकिन तकनीकी भाषा का संबंध विज्ञान के अलावा अन्य विषयों का व्यवहार-क्षेत्रों से भी हो सकता है। शेयर-बाजार, पत्रकारिता, कार्यालय तथा बैंकिंग आदि व्यवहार आदि क्षेत्रों में प्रयुक्त भाषा-रूप तकनीकी है। इसी प्रकार सामाजिक-विज्ञान विषयों की भाषा भी तकनीकी हो सकती है। लेकिन इन्हें वैज्ञानिक या विज्ञान की भाषा नहीं कह सकते। दूसरे शब्दों में हर विज्ञान की भाषा तकनीकी हो सकती है लेकिन हर तकनीकी भाषा अनिवार्यत: विज्ञान की भाषा नहीं हो सकती।
विज्ञान की भाषा के अन्तर्गत हम किन-किन विषयों की भाषा को लेते हैं? सीमित अर्थ में देखें तो इसके अन्तर्गत मूल विज्ञान विषयों तथा उनके अनुप्रयुक्त विज्ञान विषयों को हम शामिल कर सकते हैं। इन विषयों का एक मोटा-सा वर्गीकरण नीचे दिया जा रहा है, जिससे विज्ञान की भाषा के विस्तार का अनुमान लगाया जा सकता है- मूलभूत विज्ञान विषय
विज्ञान विषयों के संबंध में एक बात ध्यान रखने योग्य है। वह यह कि कोई भी विज्ञान-विषय अपने अध्ययन क्षेत्र तक सीमित नहीं रहता। हर विज्ञान-शाखा दूसरी शाखा के क्षेत्र में अतिक्रमण करती है और दो या तीन शाखाएँ मिलकर एक पृथक ज्ञान शाखा को भी जन्म देती हैं, जैसे जैव रसायन (बायो केमिस्ट्री), कंप्यूटर विज्ञान, आर्युविज्ञान आदि। यहाँ तक कि सामाजिक-विज्ञान विषयों और विज्ञान-विषयों में भी कई जगह यह सम्मिश्रण दिखाई देता है। क्योंकि सामाजिक विज्ञानों के कई विषय वैज्ञानिकता की ओर अग्रसर हो रहे हैं और अनेक वैज्ञानिक शब्दों को ग्रहण कर रहे हैं। जैसे-जैसे गणितीय भाषाविज्ञान, प्रबंधविज्ञान, कंप्यूटेशन भाषाविज्ञान, मनोभाषाविज्ञान आदि विषय क्षेत्रों में। जिस तरह विज्ञान-विषयों की अपनी शब्दावली और वाक्य-शैली है, इसी तरह सामाजिक विज्ञानों और मानविकी के विषयों की भी अपनी शब्दावली, अभिव्यक्तियाँ और वाक्य-रूप होते हैं। सामाजिक विज्ञानों के अन्तर्गत अर्थशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, पुरातत्व, शिक्षा, मनोविज्ञान, वाणिज्य प्रबंध-विज्ञान, नृविज्ञान, प्रशासन आदि अनेक विषय आते हैं। मानविकी विषयों के अन्तर्गत. सामान्यत: साहित्य कला, भाषा, दर्शन और इतिहास आदि विषय आते हैं, जिनका संबंध मानव, मानव-विचार, मानव-कार्यों या संबंधों से होता है। लेकिन व्यापक अर्थ में कभी-कभी सामाजिक विज्ञान, विषयों को भी मानविकी के अंतर्गत मान लिया जाता है।
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