गवेषणा 2011 पृ-30
इन विषयों की भी अपनी विशिष्ट शब्दावली और अभिव्यक्ति-शैली होती है। याद रहे कि इन भाषा-रूप को भी हम तकनीकी भाषा कह सकते हैं, भले ही इनमें तकनीकीपन की मात्र, विज्ञान की भाषा की तुलना में बहुत कम हो। जैसे-
पहले गंद्यांश में 'वायुमण्डल मे उचित धूलकण' सौर प्रकाश तथा प्रकीर्णन आदि विज्ञान के तकनीकी शब्द हैं। यहाँ 'वायुमण्डल' की जगह 'आकाश' नहीं कह सकते। 'धूलकण' की जगह 'धूल' नहीं कह सकते और प्रकीर्णन की जगह फैलना नहीं कह सकते। दूसरे गंद्याश का संबंध वाणिज्य से है और उसमें भी मंडी या बाजार भाव से संबंधित सूचना दी जा रही है। इसकी भाषा अधिक बोधगम्य है और अखबारी भाषा में है, जहाँ केवल स्वच्छ अभिव्यक्तियाँ जैसे 'आवक घटना', ‘पड़ता न खाना' तथा ‘उछाल खाना’ जैसे सरल तकनीकी शब्द हैं। अत: तकनीकी भाषा में तकनीकीपन की मात्र एक समान नहीं होती। कुछ संदर्भों तथा विषयों में तकलीकीपन कम होता है और विषय का सामान्य-सा ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भी उसे समझ सकता है। इसके विपरीत कुछ तकनीकी भाषा-रूपों में तकनीकीपन की मात्रा अधिक होती है और कुछ में बहुत ही अधिक, जैसे कंप्यूटर विज्ञान, उच्चविज्ञान तथा प्रौद्योगिकी की भाषाएँ इस प्रकार की अति तकनीकी भाषा को विषय का अच्छा जानकार या विशेषज्ञ ही पूरी तरह समझ पाता है। सामान्य और वैज्ञानिक भाषा-रूपों में अन्तरजब हम अपनी बात को एसे शब्दों और वाक्यों के माध्यम से व्यक्त करते है, जिनमें प्रचलित शाब्दिक अर्थ की अभिव्यक्ति होती है तो उसे हम सामान्य भाषा कहते हैं। यदि किसी भाषा-रूप के इच्छित को समझने के लिए हमें उसके शब्दों या वाक्यांशो के गूढ़ या विशिष्ट अर्थों को पूछना पड़े या उनके लाक्षणिक अर्थों का सहारा लेना पड़े, वह सामान्य भाषा से इतर होता है। इस दृष्टि से साहित्य भाषा और वैज्ञानिक भाषा दोनों सामान्य भाषा से किसी न किसी सीमा तक अलग सिद्घ होती है। सामान्य भाषा में भी हम अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से संप्रेषित करने के लिए कभी-कभी शब्दों का लाक्षणिक प्रयोग करते हैं। लेकिन यह केवल प्रांसगिक रूप में ही होता है लक्षणा, व्यंजना या अलंकार का प्रयोग मूलत: साहित्य की भाषा का गुण है। जैसे-जैसे किसी भी ज्ञान क्षेत्र की गहराई में हम जाते हैं, हमारे विचार सरल से जटिल होते जाते हैं, एक ही संकल्पना के अंन्तर्गत कई और उप-संकल्पनाएँ जन्म लेती हैं। फलस्वरूप हमारे शब्दों के अर्थ विशिष्ट होते जाते हैं, शैली बदलती जाती है और नए शब्दों का जन्म होता है। फलस्वरूप विज्ञान की भाषा सामान्य तथा साहित्यिक दोनों प्रकार के भाषा-रूपों से अलग होती जाती है। इन दोनों भाषा रूपों में निम्नलिखित अंतर महत्वपूर्ण है।
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